नाभि खिसक जाने पर वापस बिठाना जरूरी है! जानिए कैसे?
नाभि खिसक जाने या हट जाने के कई कारण हो सकते हैं-
स्कूटर में किक मारने से नाभि हट सकती है।
गलत तरीके से वजन उठाने या खिसकाने से नाभि खिसक सकती है।
रीढ़ की हड्डी झुकाकर बैठने से नाभि हट कर अंदर की ओर धंस जाती है।
गलत तरीके से बैठने, खड़े होने, बैठने, उठने, सोने और गलत तरीके व्यायाम व योगासन करने से भी नाभि खिसक सकती हैं
अधिक समय दस्त होने की समस्या होने पर भी नाभि खिसक जाती है।
जीवन शैली और आहार असंयमित, असंतुलित व असमायोजित और अप्राकृतिक हो तब भी नाभि खिसकने पर होने वाले कष्ट भोगने पड़ते है।
नाभि खिसक जाने पर क्या करें?
1. मेरूदण्ड की सूक्ष्य यौगिक क्रियाएं करें।
इन क्रियाओं में मुख्यतः पांचवी व छठीं क्रिया करें।
क्रिया 5. – जमीन पर पतली दरी या पतला कंबल बिछाएं। पीठ के बल बिल्कुल सीधा लेटे। दोनों हाथों को कंधे के समानान्तर बिल्कुल सीधा रखें हथेलिया आसमान की ओर रहें। दोनों पैरों के पंजे भी आसमान की ओर रहें। शरीर को बिल्कुल शिथिल कर दें। सम्पूर्ण विश्रामावस्था।
हाथों की स्थिति समान रखते हुए दोनों पैरों को घुटनो से मोड़े। दोनों पैरों में एक से डेढ़ फुट की दूरी रखें। लम्बा गहरा श्वास लेते हुए दोनों घुटनों को बाईं ओर तथा गर्दन को दाईं ओर मोड़े। ठोडी को दाएं कंधे से छूए। क्षमता अनुसार प्रयास करें कि बाएं पैर की एडी और दाएं पैर का घुटना आपस में छू सकें। इस स्थिति में कुछ सैकण्ड क्षमता व सामर्थ्य अनुसार रूकें। अब धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास छोड़ते हुए पुनः पूर्व स्थिति में आ जाएं। कोशिश करें कि जितना समय श्वास लेने में लगें उससे दुगुना समय श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगें।
अब पुनः लम्बा श्वास लेते हुए दोनों घुटनों को दाईं ओर तथा गर्दन को बाईं ओ मोड़ें। ठोडी को बाएं कंधे से छूए। क्षमता अनुसार प्रयास करें कि दाएं पैर की एडी और बाएं पैर का घुटना आपस में छू सकें। इस स्थिति में कुछ सैकण्ड क्षमता व सामर्थ्य अनुसार रूकें। अब धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास छोड़ते हुए पुनः पूर्व स्थिति में आ जाएं। कोशिश करें कि जितना समय श्वास लेने में लगें उससे दुगुना समय श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगें। यह एक आवृत्ति पूरी हुई। इस प्रकार कम से कम पाँच बार अर्थात् पाँच आवृत्ति की जानी चाहिए।
क्रिया 6. – जमीन पर पतली दरी या पतला कंबल बिछाएं। पीठ के बल बिल्कुल सीधा लेटे। दोनों हाथों को कंधे के समानान्तर बिल्कुल सीधा रखें हथेलिया आसमान की ओर रहें। दोनों पैरों के पंजे भी आसमान की ओर रहें। शरीर को बिल्कुल शिथिल कर दें। सम्पूर्ण विश्रामावस्था।
हाथों की स्थिति आसमान की ओर रखते हुए दोनों पैरों को घुटनो से मोड कर कूल्हों के अधिकतम पास रखें। दोनों पैर आपस में सटा कर रखें अर्थात् दोनों पैरों के अंगूठे व एडी किनारों से आपस में सटी रहें। लम्बा गहरा श्वास लेते हुए दोनों घुटनों को आपस में सटी हुई स्थिति में ही बाईं ओर तथा गर्दन को दाईं ओर मोडं़े। ठोडी को दाएं कंधे से छूए। क्षमता अनुसार प्रयास करें कि बाएं पैर का बाहर वाला हिस्सा जमीन को छू सकें। इस स्थिति में कुछ सैकण्ड क्षमता व सामर्थ्य अनुसार रूकें। अब धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास छोड़ते हुए पुनः पूर्व स्थिति में आ जाएं। कोशिश करें कि जितना समय श्वास लेने में लगें उससे दुगुना समय श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगें।
अब पुनः लम्बा गहरा श्वास लेते हुए दोनों घुटनों को आपस में सटी हुई स्थिति में ही दाईं ओर तथा गर्दन को बाईं ओर मोडं़े। ठोडी को बाएं कंधे से छूए। क्षमता अनुसार प्रयास करें कि दाएं पैर का बाहर वाला हिस्सा जमीन को छू सकें। इस स्थिति में कुछ सैकण्ड क्षमता व सामर्थ्य अनुसार रूकें। अब धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास छोड़ते हुए पुनः पूर्व स्थिति में आ जाएं। कोशिश करें कि जितना समय श्वास लेने में लगें उससे दुगुना समय श्वास धीरे-धीरे बाहर निकालने में लगें। यह एक आवृत्ति पूरी हुई। इस प्रकार कम से कम पाँच बार अर्थात् पाँच आवृत्ति की जानी चाहिए।
नाभि खिसक जाने पर वापस बिठाना जरूरी है! हाल ही में हटी या उतरी नाभि को ऊपर बताई गई दोनों क्रियाओं से शीघ्र ही बैठ जाती है किन्तु लम्बी अवधि से हटी या उतनी नाभि को सही स्थान पर लाने के लिए साथ में उत्तानपादासन और नौकासन की पाँच-पाँच आवृत्तियां भी साथ में की जानी चाहिए।
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