बाहर खाने की ललक छोड़ दीजिए Give up the urge to eat out

बाहर खाने की ललक छोड़ दीजिए-


आज जहाँ देखो उधर ही रेस्टोरेंट्स और होटल्स या थड़ी-ठेलों पर भी लाईन की भीड़ नज़र आने लगती है। इतनी भीड़ को देखकर एक बारगी तो लगता है कि घर में खाने को नहीं मिलता और सारे भूख के मारे सड़कों पर या रेस्टोरंट्स और होटल्स में आ गए है और लम्बी कतार में लग कर खाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।


विशेषतः छुट्टी के दिन तो मत पूछिए परिवार व दोस्तों के साथ प्लानिंग होती है कि आज कहाँ खाना खाने के लिए जाया जाएं।
यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि बाहर के खाने में सुंदरता और स्वाद बढ़ाने के लिए सोडा, नकली मसाले, घटिया तेल व घी और सिंथेटिंक रंग तक जरूर मिला होता है। सोडा भारी होता है। सब्जियों में अधिक मिर्च का इस्तेमाल पेट व आंतों के लिए बहुत घातक है। गर्म मसाला, सिंथेटिक रंग और निम्न स्तर की वसा खून को दूषित कर और कई जटिल रोग उत्पन्न कर देती है।


बाहर खाने की ललक छोड़ दीजिए, आकर्षक दिखने वाला भोजन देखकर जीभ लालायिक हो उठती है उस आवेश में भूख की आवश्यकता से अधिक भोजन भी ठूंस-ठूंस का खा तो लेते है किंतु कुछ ही देर में पेट अधिक भरा हुआ व पेट फूला हुआ महसूस होता है। कई बार तो एसीडीटी और गैस की समस्या भी बड़े रूप में पनप जाती है।


घर पर भले ही हमने सप्ताह में पांच दिन भरपूर स्वाथ्यवर्धक, सेहतमंद व पोषण वाला खाना खाया होगा किंतु दो दिन बाहर का भोजन करके पहले का खाया-पीया सब बेकार चला जाता है। बाहर खाना खाने निकले है तो यह भी खा लेते है वह भी खा लेते है सब घोटमोट करके सब चलता है की पटरी पर आ जाते है और सेहत के प्रति पिछली सारी मेहनत बेकार कर देते हैं।


यदि कभी-कभार बाहर खाना ही पड़े तो ध्यान रखें कि कुछ हल्का-फुल्का ही खाना चाहिए और वह भी कभी पूरा खाना नहीं।

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