अक्टूबर से फरवरी तक पाँच महीनों में क्या खाया जाएं-सर्दियों में चिकनाई वाले, बल पुष्टि, खून एवं मांस बढ़ाने वाला आहार खाना चाहिए।
शुद्ध घी, मक्खन, दूध, ताजा दही, छाछ, मिश्री, मलाई, दूध, चावल की खीर, उड़द की दाल, स्निग्ध पदार्थ, मधुर रसीले पदार्थ, हरी पत्तेवाली सब्जियां, मैथी, सौंठ, अंजीर, मोटा अनाज की खिचड़ी, रोटी, गाजर, आंवला, शहद, गुड़, अदरक, केसर, पिस्ता, अखरोट, सूखे मेवे, बादाम, पिण्ड खजूर, तिल और पौष्टिक दूध आदि का संतुलित अनुपात और मात्रा में सेवन करना चाहिए।
पौष्टिक दूध कैसे बनांए
चौथाया चम्मच सौंठ, चौथाया चम्मच काली मिर्च, दो अंजीर या 4 पिण्ड खजूर के छोटे-छोटे टुकड़े, चार-पाँच कटे हुए पिस्ता सभी को एक ग्लास दूध में डालकर 20 मिनट तक उबालें। सुबह पानी में रखा हुआ एक बादाम छिलकर उसकी बारीक चटनी बनाकर दूध में डालें। केसर की 5-6 पंखुड़िया दूध की कुछ बूंदों की सहायता से घीस कर दूध में मिलाएं। एक चम्मच ष्शुद्ध घी गर्म करके डालें। दूध में से अंजीर या पिण्ड खजूर चम्मच की सहायता से प्लेट में निकालें और खूब चबा-चबा कर खाते हुए बीच-बीच में घूंट-घूंट सहता हुआ गर्म दूध पीते रहें। दूध पीने के 15-20 मिनट बाद कुल्ला करके दांत और मुँह साफ करके सो जाएं। यह दूध पूरे वर्ष पी सकते हैं किंतु गर्मियों में केसर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
रोज सुबह खाली पेट लहसुन की 3-4 कलियां छील कर दूध या पानी के साथ गोली की तरह गटक जाना चाहिए या रात को सोते समय जब दूध पीते है तब उसी के साथ 3-4 लहसुन की कलियां गटक जाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहता है। इसके प्रयोग से वात का ष्शमन होता है। जोड़ों का दर्द खत्म होता है। स्नायविक संस्थान मजबूत होकर वात रोगादि दूर होते है।
गाजर, टमाटर, आंवला, चुकंदर व पालक जो भी उपलब्ध हो मिश्रित रस या सूप पीना चाहिए। दिन में भी मौसमी फल व फलों का रस पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।
वृद्ध जनों को च्वयनप्राश का सुबह-शाम सेवन दो-दो चम्मच करना चाहिए।
अक्टूबर से फरवरी तक पाँच महीनों में सर्दियों में शौचादि से निवृत्त होकर वायु सेवन के लिए प्रातः भ्रमण या जॉगिंग के लिए जाना चाहिए। 4-5 किलोमीटर तक जरूर घूमना या हल्की दौड़ लगानी चाहिए। इसके बाद 10 मिनट विश्राम करके योगासन और व्यायाम आदि भी किया जाना हितकर है। रात को भिगे हुए अंकुरित चना चबा-चबा कर नाश्ता करना चाहिए इसके बाद एक ग्लास गर्म दूध पीना चाहिए। सुबह सूर्योदय से पूर्व जागना चाहिए। नाश्ता सुबह 7 से 7-30 बजे तक कर लेना उचित है।
स्नान से पहले सरसों या जैतून के तेल की मालिश जरूर करना चाहिए। इस प्रयोग से समुचित रक्त संचार होता है, त्वचा स्निग्ध, लालिमा युक्त, चिकनी और कांतिमय बनती है। शरीर चुस्त-दुरूस्त, फुर्तीला और शक्तिशाली बनता है। पौष्टिक आहार आसानी से पच जाते हैं।
रात को अधिक देर तक जागने से पाचन तंत्र का काम करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता जिससे कब्ज, अपच और वात का प्रकोप हो जाता है साथ ही पित्त भी यदि कुपित हो जाए तो जी मिचलाता है और खट्टी डकारे आने लगती है और उल्टी के साथ कई बार जमा हुआ पित्त भी निकलने लगता है। अतः
सर्दियों में अपने आहार-विहार का अच्छे से ख्याल रखना चाहिए।
सर्दियों में क्या नहीं खाएं-
रूखे, सुखे, बहुत अधिक ठण्डे पदार्थ, बासी, कड़वे, खट्टे, चटपटे, बाजारू दही, लस्सी, खट्टे पदार्थ, खराब तेल से बने पकवान, इमली, अमचूर, अचार, खट्टी छाछ व दही, खट्टे आम तथा वायु कुपित करने वाले खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए क्योंकि इनके सेवन से जुकाम, खांसी, गले में दर्द व खराश, टांसिलाइटिस, ब्रोंकाकाइटिस, दमा, अस्थमा, गठिया, जोड़ों का दर्द, साइटिका व अन्य अंगों में दर्द आदि की समस्या पैदा हो सकती हैं।
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