अनुप्रेक्षा के साथ निरोगता का लक्ष्य प्राप्त करें

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भावों के परिवर्तित होते ही स्रावों में परिवर्तन होताहै। तब स्वतः ही शारीरिक परिवर्तन भी दिखाई देने लगते है। बार-बार किया गया चिंतन आत्म निर्देश का रूप धारण कर लेता है चाहे चिंतन भला हो या बुरा उसी अनुरूप मन औरष्शरीर में परिवर्तन कर देता है। आत्म निर्देश द्वारा रोग को दूर भगाया जा सकता है बात अभ्यास की है।

दृढ़ विश्वास और संकल्प का मनोबल रूपान्तरण कर देता है। किसी भी रोग अथवा बीमारी के प्रति बार-बार चिंतन करने से व्यक्ति को रोग विशेष जरूर हो जाता है तो क्यों नहीं निरोग रहने का चिंतन किया जाए।  अनुप्रेक्षा अर्थात् चिंतन करें अथवा अमुक रोग अथवा बीमारी के शांत होने का सुझाव देते रहें कि मेरा अमुक रोग या बीमारी शांत हो रही है…..या दर्द शांत हो रहा है…. या पीड़ा शांत हो रही है….. ऐसा प्रतिदिन प्रातः तथा रात्रि सोने से पूर्व 5 मिनट अनुप्रेक्षा करें अर्थात् अनुचिंतन करें।

अपनी भावनाओं का प्रसार स्पर्श द्वारा तथा मानसिक प्रवाह द्वारा शरीर को दें। कूुछ दिन करके देखिए कैसी कांति झलक उठेगी और शरीर निरोग होगा। विचारों के परमाणु एकत्र होने लगते है और अणु बदलने लगते है। मानसिक अनुशासन रखने के अभ्यासी बनें।

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