बचपन से व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वभाव और व्यवहार पर संगति का बड़ा प्रभाव दृष्टिगत होता है। रहन-सहन और काम करने का तरीका बिगड़ चुका है उसे सुधारना अभी शेष है। न सोने का समय निश्चित है, न जागने का समय निश्चित है न भोजन का समय निश्चित है तीनों का संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका है।
डॉ. प्रकाश जैन
Doctor of Philosophy – (science of living),
M. Com, M. A. History, M.A. Psycology
M. A. S O L, Diploma in Nutritian and Health, Education
Prakratik chikitsak, MBA
शरीर को उसके छीजत होने से रोकने तथा ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आहार, काम और विश्राम तीनों एक कला है जिसका ज्ञान सभी को बचपन से होना चाहिए।
यंत्र, तंत्र, टोटकों, अत्यधिक दवाओं और सूईयों में स्वास्थ्य का पूर्ण समाधान नहीं। जैसी संगति होगी वैसा ही व्यंिक्तत्व होगा इसलिए भोजन, आचार-विचार, खुली हवा, योगासन, व्यायाम, सूर्य किरणों आदि के साथ अच्छी संगति को अपने जीवन में दाखिल करने हेतु सकारात्मकता एवं क्रियात्मकता को इस ब्लॉग में प्राथमिकता दी गई है। वर्षों के अध्ययन, अनुभव, नवीन विधियों तथा शोधों की जानकारी के साथ ही साथ यह ब्लॉग सामाजिक, नैतिक तथा मनोजन्य व्यवहार संबंधी व्यवस्थाओं के प्रंित भी लक्षित है। पाठकों को यह ब्लॉग पूर्ण रूप से समर्पित है साथ ही एक निवेदन है कि कभी भी किसी ने क्या कहा या क्या पढ़ा उसी का बिना सोचे समझे व जाने अनुपालन या अनुसरण ठीक नहीं प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है इसलिए किसी योग्य व प्रशिक्षित चिकित्सक की देखरेख में ही उपचार लेना अच्छा होता है।
बच्चों के भविष्य की कल्पना करते है उन्हें उसी सांचें में ढालने के प्रयास में ताउम्र पूरी मशक्कत शिक्षा पर लगा देते हैं। ऊँचा पद, ऊँची शिक्षा, ऊँचा घर, ऊँची गाड़ी के प्रयास में ऊँचा स्वास्थ्य बिल्कुल खो देते हैं किन्तु जान है तो जहां है हमेशा याद रखिए। शरीर में स्वयं को स्वस्थ रखने और आवश्यकताओं को पूर्ण करने की क्षमता होती है लेकिन बचपन से किशोरावस्था तक शरीर को स्वस्थ, निरोग और बलवान बनाने की प्रमुख तथा आधारभूत शिक्षा के संस्कार पूरी तरह कभी नहीं दिए जाते। मानवीय शरीर दुनिया की सर्वोत्तम मशीन है। शरीर कोशिकाओं, रक्त, मांस, मज्जा, हड्डियां, चर्बी तथा वीर्य आदि अवयवों का निर्माण स्वयं ही करता है जबकि आज का आधुनिक विज्ञान, चिकित्सक अथवा वैज्ञानिक भी जटिल कोशिशों के बावजूद इन सबको बना नहीं सका है।
एक बात तय है कि जीवन है तो बीमारियां आएंगी ही और प्रकृति का नियम है जन्म, बचपन, जवानी, वृद्वावस्था तथा मृत्यु यही जीवन है किन्तु अपनी गलतियों, आदतों तथा व्यवहार की जिद्ध के चलते हम बीमारियों को अपवाद स्वरूप क्यों आमंत्रित करें जहाँ तक हो सकें इनसे बचाव के प्रयास क्यों न करें। यदि रोग हो भी जाए तो तनाव, अवसाद, चिंता आदि मानसिक बीमारियों का दामन न थाम कर उसके कारणों को ढूंढ कर अनुशासित व सकारात्मक जीवन-शैली और आहार-विहार द्वारा भी शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रोगों से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है।
जीवन में कभी भी स्वास्थ्य के लिए योजना हम नहीं बनाते और शारीरिक मानसिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्राकृतिक नियमों के विपरीत करते रहते हैं और स्वास्थ्य हमसे कोसों दूर चला जाता है। अस्वास्थ्य और बीमारियाँ भविष्य बन जाती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य के अलग-अलग स्तर पर जीता है। स्वस्थ रहने हेतु निदान और उपचार की यथार्थता के प्रति स्वयं की सजगता और विवेक सर्वप्रथम अति आवश्यक है।
यह ब्लॉग शारीरिक-मानसिक, व्यवहारात्मक तथा भावनात्मक रोगों की उत्पत्ति के कारण तथा इनके अनुभूत प्रभावी प्राकृतिक तथा आयुर्वेदिक उपचार के साथ संतुलित जीवन-शैली, आहार व्यवस्था, योग, आसन, व्यायाम, ध्यान तथा रंग चिकित्सा आदि का अपने जीवन में पालन का समर्थन करता है।
शारीरिक, मानसिक, व्यवहारात्मक तथा भावनात्मक पहलू जीवन में बहुत अधिक स्थान रखते हैं। हम इस ब्लॉग के माध्यम से सभी पाठकों को सकारात्मक चिंतन व भावना के साथ स्वस्थ तथा प्रसन्न रहने, गलत आहार-विहार, आचार-विचार तथा व्यवहार का ढंग बदलने तथा मुस्कुराहट के साथ ऊर्जात्मक पहलुओं के अभ्यास तथा प्रयोग हेतु कामना करते है कि प्रारम्भ तो करिएं अंत भी भला होगा….कर भला सो हो भला…
डॉ. प्रकाश जैन